शुक्रवार तड़के4.30 बजे बद्रीनाथ धाम के कपाट खोल दिए गए। कपाट खोलने की विधियां रात 3 बजे से ही शुरू हो गई थीं। रावल ईश्वर प्रसाद नंबूदरी द्वारा विशेष पूजा-अर्चना की गई। इस दौरान गुरु शंकराचार्यजी की गद्दी, उद्धवजी, कुबेरजी की पूजा की गई। कपाट खुलने के बाद लक्ष्मी माता को परिसर स्थित मंदिर में स्थापित किया।भगवान बद्रीनाथ का तिल के तेल अभिषेक किया गया।
धर्माधिकारी भुवनचंद्र उनियाल के मुताबिक श्री बदरीनाथ धाम के कपाट मनुष्य पूजा के लिए प्रातः 4:30 बजे खोल दिए गए। उत्तराखंड चारधाम देवस्थानम बोर्ड के मीडिया प्रभारी डॉ. हरीश गौड़ ने बताया कि ऋषिकेश की श्री बद्रीनाथ पुष्प सेवा समिति द्वारा 10 क्विंटल से अधिक फूलों से मंदिर को सजाया गया है।
लॉकडाउन के नियमों का पालन किया
हर साल हजारों भक्तों के सामनेयहां कपाट खोले जाते हैं, लेकिन इस साल लॉकडाउन की वजह से कपाट खुलते समय लगभग 30 लोग ही उपस्थित थे। रावल नंबूदरी, धर्माधिकारी भुवनचंद्र उनियाल के अलावा यहां मंदिर समिति के सीमितलोग, शासन-प्रशासन के अधिकारी और कुछ क्षेत्रवासी यहां उपस्थित थे। सभी ने मास्क लगाया हुआ था और सोशल डिस्टेंसिंग का पालन किया।
महामारी दूर करने के लिए की गई विशेष पूजा
कपाट खुलने के बाद बद्रीनाथ के साथ ही भगवान धनवंतरि की भी विशेष पूजा की गई। धनवंतरि आयुर्वेद के देवता हैं। दुनियाभर से इस महामारी को खत्म करने के ये पूजा रावल नंबूदरी द्वारा की गई। बद्रीनाथ का तिल के तेल से अभिषेक होता है और ये तेल यहां टिहरी राज परिवार से आता है। टिहरी राज परिवार के आराध्य बद्रीनाथ हैं। रावल राज परिवार के प्रतिनिधि के रूप में भगवान की पूजा करते हैं। यहां परशुराम की परंपरा के अनुसार पूजा की जाती है।
शंकराचार्य के कुटुंब से होते हैं रावल
यहां बद्रीनाथ की पूजा करने वाले पुजारी को रावल कहा जाता है। आदि गुरु शंकराचार्य ने चारों धामों के पुजारियों के लिए विशेष व्यवस्था बनाई थी। इसी व्यवस्था के अनुसार बद्रीनाथ में केरल के रावल पूजा के लिए नियुक्त किए जाते हैं। सिर्फ रावल को ही बद्रीनाथ की प्रतिमा छूने का अधिकार होता है।
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दैनिक भास्कर,,1733
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