पुणे के केमिकल फैक्ट्री में काम करने वाले 50 वर्षीय मजदूर दिनेश यादव कभी सपने में भी नहीं सोचा था कि उन्हें पुणे से गुरारू तक का 1700 किलोमीटर सफर पैदल तय करना पड़ेगा। मजदूर ने बताया कि काम ठप होने के बाद पुणे जैसे बड़े शहर में मेरे लिए एक-एक दिन भी काटना मुश्किल हो रहा था। यहां कोरोना का डर भी सता रहा था।
मजदूरों को कोई पूछने वाला नहीं था। यहां भूखे मरने से अच्छा था कि घर जाकर सुकून से मर सकूं। मेरे बैंक खाते में सिर्फ 10 हजार रुपए बचे थे। जिसे निकालकर रास्ते में खर्च के लिए रख लिया। बताया कि यात्रा के दौरान पुलिस के डर से मेन रोड से नहीं चलकर खेत-बधार व जंगल के रास्ते से गुजरता था।
खेत-बधार व पेड़ के नीचे सो जाता था। जो मिलता था खा लेता था। मैं 45 दिन तक पैदल चलकर यहां तक पहुंचा हूं। जैसे ही मजदूर अपने गांव गुरारू प्रखंड के डबूर पहुंचा, वहां के पूर्व मुखिया जितेंद्र यादव ने मजदूर को खाना खिलाया। उसके बाद उसे इलाज के लिए गुरारू प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र भेजा।
अमृतसर से दस दिनों में साइकिल से घर पहुंचे परसावां कला
गुरुआ प्रखंड स्थित दुब्बा पंचायत की परसावां कला गांव के युवक मिथिलेश रविदास, मनोज रविदास और कृष्णा रविदास पंजाब के अमृतसर से दस दिनों में साइकिल चलाकर घर पहुंचे हैं। वे लोग वहां साड़ी मिल में नौकरी करते थे। चौथी बार लाॅकडाउन की घोषणा होने पर सभी लोग निराश होकर पहले तो पैदल घर आने की कोशिश किया तो वहां की पुलिस वापस कर दिया।उसके बाद सभी लोग अपने घर से पैसे मंगवाकर पांच हजार रुपए में तीन पुरानी साइकिल खरीदकर घर के लिए निकले वहां से दस दिन का समय लगा उसके बाद अपनी मातृभूमि तक पहुंचकर तमरुआ गांव के क्वारेंटाइन सेंटर पर भर्ती हुए हैं।
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दैनिक भास्कर,,1733
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