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Saturday, September 5, 2020

लालू के करीबियों को नहीं भा रहे तेजस्वी, कई ने पार्टी ही छोड़ दी; विधायकों के बोल: अब पूंजीपतियों का बोलबाला, गरीबों का नाम नहीं

(इंद्रभूषण) बिहार में चुनावी उठापटक जारी है। यहां की प्रमुख पार्टी राजद में ज्यादा ही हलचल है। रोचक यह है कि कांग्रेस में पुराने और नए नेताओं में चल रही खींचतान जैसा ही परिदृश्य बिहार में राजद का भी है। कांग्रेस की रस्साकशी, पार्टी बनाम परिवार की वफादारी और राहुल बनाम सोनिया कैम्प के तौर पर प्रचारित है। राजद में भी कमोबेश यही स्थिति है। यहां भी लालू युग और तेजस्वी युग का फासला पनप रहा है।

पिछले 70 दिनों में राजद छोड़कर 12 एमएलए-एमएलसी जदयू में शामिल हो चुके हैं। पार्टी छोड़कर जाने वाले ज्यादातर नेता वे हैं, जिन्होंने लालू प्रसाद की सरपरस्ती में राजनीति की लेकिन तेजस्वी से इनकी जुगलबंदी नहीं हो सकी। कुछ का अहं आड़े आया तो कुछ ने टिकट की आस में भी पाला बदला है। दरअसल, राजद अध्यक्ष लालू प्रसाद यादव दिसंबर, 2017 से लगातार जेल में हैं।

इन वर्षों में राजद के पुराने नेताओं से तेजस्वी यादव का मिलना-जुलना कम ही रहा। पार्टी का कोई कार्यक्रम हो या विधानमंडल का सत्र, इन दो मौकों पर ही उनकी भेंट तेजस्वी से हुई। इन मुलाकातों में भी पुराने नेता लालू के समक्ष जितना सहज होकर अपनी बात रख पाते थे, तेजस्वी यादव से वैसी बातचीत नहीं कर पाए। उम्र का फासला भी आड़े आता रहा।

इस अवधि में ही तेजस्वी ने नए युवा नेताओं की एक टीम बना ली और कमोबेश उनसे दूर ही रहना पसंद किए जो बात-बात में उन्हें उनके पिता की दुहाई देते रहे। सामान्य शिष्टाचार में भी तेजस्वी से ज्यादा उम्र होने के कारण पुराने नेता उनसे वही आदर चाहते हैं, जो उन्हें लालू के साथ राजनीति करने के समय मिलता रहा है।

  • जयवर्द्धन यादव- राजद में पॉलिटिकल बैकग्राउंड वाले नेताओं को प्रताड़ित किया जाता है। लालू-राबड़ी शासन के 15 साल में पटना जिला से मात्र एक नेता बृजनंदन यादव को मंत्री बनाया गया। अब यहां नॉन पॉलिटिकल बैकग्राउंड वाले उन नेताओं की ही पूछ है जिनके पास पैसा है।
  • महेश्वर यादव- राजद में गरीबों का सिर्फ नाम, पूंजीपतियों का बोलबाला है। वह एक परिवार की पार्टी है। गरीब, मजदूरों के लिए वहां जगह नहीं है।
  • कमरे आलम- ऐसा महसूस होने लगा कि राजद के साथ अब नहीं चल सकते तो रास्ता अलग कर लिया। अनावश्यक विवाद का कोई मतलब नहीं।


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Tejaswi was not liked by Lalu's close ones, many left the party; Lyrics of the MLAs: Now the capitalists dominate, not the name of the poor

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दैनिक भास्कर,,1733

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