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Sunday, September 6, 2020

विधानसभा चुनाव से पहले लंबित वारंट का निष्पादन कठिन, पुलिसकर्मियों को एक से दूसरे जिले में भेजना भी आसान नहीं

बिहार विधानसभा चुनाव की प्रक्रिया नवंबर के अंत तक पूरी कर लेने की घोषणा हो चुकी है। यह कोरोना-काल है और पहले की तरह भयमुक्त माहौल बनाने के लिए सारे लंबित वारंट और कुर्की-जब्ती के तामीला का समय अब नहीं रहा। चुनाव के दौरान बड़ी संख्या में पुलिसकर्मियों को एक जिले से दूसरे जिले में भेजना भी कठिन होगा।

इससे पहले आम चुनाव के पांच माह पूर्व से ही चुनाव आयोग के दिशा-निर्देश पुलिस मुख्यालय में आने लगते थे, जिसके क्रियान्वयन की समीक्षा आयोग काफी सतर्कता से करता था। सर्वप्रथम जितने भी लंबित गिरफ्तारी वारंट अथवा जब्ती कुर्की थाने में होते थे, उनका तामिला होता था। कोरोना के कारण जो विषम परिस्थिति है, उसमें कोर्ट द्वारा इतने बड़े पैमाने पर लंबित वारंट, कुर्की जब्ती का निष्पादन कराना अब व्यावहारिक नहीं रहा। कोरोना के कारण न्यायालय के कार्य भी पहले की तरह सामान्य ढंग से नहीं हो रहे हैं।

न्यायालय के भी कर्मचारीगण संक्रमित हैं। कोर्ट से संबंधित 107, 113 और 116 दंड प्रक्रिया संहिता संबंधित मामले भी इसी श्रेणी में आएंगे। अंतर इतना ही है कि दंड प्रक्रिया संहिता की इन धाराओं में कार्यपालक दंडाधिकारी के कोर्ट के कर्मचारी आते हैं और अन्य मामलों में न्यायिक दंडाधिकारी के कोर्ट के।
इसके अतिरिक्त कोर्ट से जिसमें माननीय उच्च न्यायालय भी है, की भी सहभागिता होती है। उदाहरण स्वरूप जिला पदाधिकारी के कोर्ट से ‘गुंडा एक्ट’, माननीय उच्च न्यायालय से एनएसए/सीसीए में कार्रवाई कराई जाती है। इस तरह चुनाव प्रक्रिया में पुलिस कार्रवाई के प्रथम चरण में कोर्ट की सहभागिता अनिवार्य है।

जो प्रथम चरण की कार्रवाई है, उसे भी पूरा कराना अब मुश्किल है। पुलिस की कार्रवाई में अगले चरण में बड़े पैमाने पर सिपाही, हवलदार, अवर निरीक्षक आदि श्रेणी के कर्मियों का भी मोबिलाइजेशन होता है। एक जिले की पुलिस लाइन में अगर सामान्यतः 300 कर्मी रहते हैं तो चुनाव के दौरान तीन-चार गुना पुलिसकर्मी औसतन 10 दिनों तक रहते हैं। इसके लिए मास ट्रांसपोर्ट की व्यवस्था करनी पड़ती है।

एक बस में सौ-सौ कर्मी आते-जाते हैं। मास मोबिलाइजेशन एवं मास मूवमेंट दोनों में ही लॉकडाउन के नियमों को अनिवार्य रूप से तोड़ना पड़ेगा। चुनाव के दौरान पुलिस बल का उपयोग असामाजिक तत्वों के विरुद्ध अभियान चलाने में भी किया जाता रहा है, जिसमें सघन छापामारी भी शामिल है। यह छापेमारी चुनाव के दौरान रोज होती है।

लॉकडाउन के नियमों का पालन इस प्रकार की रोजाना छापेमारी भी व्यावहारिक नहीं दिखती। बड़ी संख्या में पुलिसकर्मी भी कोरोना से संक्रमित हैं। यह भी संभव है कि जितनी संख्या में पुलिसकर्मियों की आवश्यकता होगी उतनी संख्या में पुलिस बल उपलब्ध ही ना हो। ऐसे में कोरोना संक्रमण के दौर में चुनाव कराना आसान कार्य नहीं होगा।



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अभयानंद, पूर्व डीजीपी, बिहार।

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दैनिक भास्कर,,1733

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