यदि लोककवि भिखारी ठाकुर भोजपुरी के शेक्सपियर हैं तो निश्चय ही गीतों के राजकुमार अर्जुन सिंह अशांत भोजपुरी के वड्सवर्थ हैं। फिर उनकी साहित्यिक अनुदानों की उपेक्षा? जी हां साहित्य जगत ही क्यों आमी वासी भी भूल अपने रत्नों को।
भोजपुरी गजल
“कतिना कदंम के डाढ़ हम रहली अगोर के। बाकिर तोहार बांसुरी बाजल ना भोर के।’ आज भी लोकगीत गायकों का कंठहार है। बहरहाल, वे तो यह भी नहीं जानते कि भोजपुरी के गजलगो शायर अर्जुन सिंह अशांत,आमी वाले थे।
तत्कालीन विद्वानों व मनीषियों का आशीष
कविवर अर्जुन सिंह अशांत को महादेवी वर्मा, रामधारी सिंह दिनकर, शिवपूजन सहाय, रामवृक्ष बेनीपुरी, आचार्य नरेन्द्र देव, जयप्रकाश नारायण प्रभृति मनीषियों का आशीष प्राप्त था। 1945 में मऊ बाजितपुर निवासी सरयू प्रसाद मिश्र को उन्होंने अपना गुरु मान लिया और अशांत उपनाम गुरु द्वारा प्राप्त हुए।
जन्मस्थान व शिक्षा
भोजपुरी के वड्सवर्थ अर्जुन सिंह अशांत का अवतरण 31 दिसम्बर 1931 को बिहार के तीन शक्ति पीठों में मूर्धन्य ,अंबिका स्थान आमी के नरौनी पट्टी निवासी बाबू श्री किशुन सिंह के इकलौते पुत्र रत्न के रूप में हुआ था।
कवि के शब्दों में
“जनि घबराईं मानी बतिया हमार तनीं, बानी रहनिहार हमतऽ गंगा के किनार के। दक्ष प्रजापति के पुरान प्रसिद्ध ग्राम, आमी शुभधाम जिला छपरा बिहार के। अइसे तऽ अकेलुआ कपूत सिरिकिशुन के, जाति तऽ हमार बाटे भाला तेरूआर के। होखि के सुघड़ भोजपुरिया जवान हम,गावतानी बिरहा कजरिया बहार के।’
कवि की कृतियां
वैसे कवि की कृतियां गीतों के रूप में उनके ग्रामीण सखा संतराज सिंह रागेश व सुरेश प्रसाद सिंह, जनार्दन दुबे आदि के कंठों व डायरी में है। “अमरलती’ अशोक प्रेस, पटना से प्रकाशित हुआ था। गीति रूपक’ “सोहाग के बिन्दिया’ गद्य बाबू मुसबिलार सिंह चर्चित कृतियां है। किंतु कालजयी कृति “बुद्धायन’ में कवि को महाकवियों में शुमार रोमांटिक कवि वड्सवर्थ, शेली, किट्स व छायावादी काव्य की झलक कविवर अर्जुन सिंह अशांत की काव्य सरिता अंतस-अंतराल से ही फूटती है।
प्रारंभिक शिक्षा डालमिया नगर व ग्रामीण पाठशाला के बाद राजेंद्र काॅलेज, छपरा में
प्रारंभिक शिक्षा डालमिया नगर व ग्रामीण पाठशाला के बाद राजेन्द्र काॅलेज, छपरा में हुई। जहां “फिरंगिया’ के प्रसिद्ध कवि व महाविद्यालय प्राचार्य मनोरंजन बाबू का सरस्वत सान्निध्य प्राप्त हुआ। बहरहाल, प्राचार्य मनोरंजन बाबू की संस्तुति पत्र पर तत्कालीन शिक्षा, कला एवं संस्कृति विभाग के सचिव जगदीश चंद माथुर ने एक अलग सांस्कृतिक दल “मोद मंडली’ गठन कर अशांत जी को उसका मुखिया बना दिया और उनके ग्रामीण सखा संतराज सिंह “रागेश’ सुरेश प्रसाद सिंह, उनके गीतों को स्वर देने लगे। पुलिस विभाग के एक समारोह में सस्वर काव्य पाठ से प्रभावित होकर तत्कालीन बिहार पुलिस के आईजी मिथिलेश कुमार सिन्हा ने अशांत जी को सीधे पुलिस अवर निरीक्षक पद पर नियुक्त कर ली और पुलिस विभाग का नाम राष्ट्रीय स्तर तक रौशन हुआ किंतु एक ओर कठोर पुलिस कर्म और दूसरी ओर कवि का कोमल हृदय!
कवि के अनुसार-
“करिला चकरिया बकरिया बनल बानीं, बनी मेमियात इहे कविता हमार बा। पेटवा के अगिया में बगिया जरत बाटे, दिलवा के दगिया के सोंचल बेकार बा।’
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दैनिक भास्कर,,1733
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