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Friday, May 22, 2020

“नै जैबै दिल्ली हरियाणा, यहीं कमैबै आरू खैबै खाना’

प्रगतिशील बुद्धिजीवी साहित्य मंच बरियारपुर की ओर से शुक्रवार को ऑनलाइन कवि सम्मेलन का आयोजन हीरा प्रसाद हरेन्द्र की अध्यक्षता में हुई। संचालन कवि शशि आनंद अलबेला एवं वरिष्ठ रंगकर्मी कवि शत्रु आर्या ने किया। संयोजन संजीव प्रियदर्शी ने किया। इस कवि सम्मेलन में प्रवासी मजदूरों का दर्द दिखा।

वरिष्ठ कवि महेन्द्र निशाकर ने कहा कि पल पल इस जीवन में है संघर्ष, संघर्ष से ही मिलता है उत्कर्ष, कठिनाइयों से तू मत घबराना, फिर छाएगा तेरे जीवन में हर्ष।वरिष्ठ गीतकार अश्विनी प्रजावंशी ने कहा’ प्रेम ते जोड़ छेकै आरो पत्ता छेकै, ई ते जिनगी के मरम ऐहे ते सत्ता छेकै।गजलकार डॉ राजेन्द्र प्रसाद मोदी ने पढ़ा -उम्मीद तेरे दर पे कितने यहां बैठे हैं, करम कर ऐ खुदा अब तो सभी बेजार बैठे हैं।

विकास ने अपनी गजल के माध्यम से कहा आंगन दर्पण दामन ये सब देखूं तो, अपने घर की यादों में खो जाता हूं। कवि त्रिलोकी नाथ दिवाकर ने कहा कि हरी धरती हवा पानी विधाता ने रचाया है, जहां संगीत चिड़िया का गगन को खूब भाया है।
ज्योतिष चन्द्र ने पढ़ा- ओ जाने वाले अवधेश ढूंढ अपना अवशेष, सुपुर्दे खाक में बचा है कुछ शेष।

शशि आनंद अलबेला ने प्रवासी मजदूरों की भूख को गजल के माध्यम से पढी, आ चलो अब लौट जाएं गांव अपने घर, गांव में हमको मिलेगी प्यार की रोटी। कवि राजकिशोर मुसाफिर ने कहा कि कहां कोरोना में बारात लगती है, मजदूरों की है यह व्यथा जो बारात दिखती है। प्रो. शिशिर कुमार सिंह ने कहा, ईश रचित ब्राह्मण श्रेष्ठ है, प्रभु उपहार सुमाता, कर सकता नहीं सुपरिभाषित मातृ प्यार व्याख्याता।

बता दें कि कोरोना और लॉकडाउन के कारण इस समय सार्वजनिक आयोजन नहीं हो रहे हैं। ऐसे में ऑनलाइन सम्मेलन का चलन बढ़ा है। इसी कड़ी में ऑनलाइन कवि सम्मेलन हुआ।



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दैनिक भास्कर,,1733

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