10 सितंबर को शाम की गश्ती के दौरान हबीबपुर थाने के प्राइवेट ड्राइवर शेख अफसार की बदमाशों ने गोली मारकर हत्या कर दी थी व जब्त बाइक को लूट कर ले गए थे। इस मामले में कजरैली थाने के दारोगा राजकिशोर ठाकुर के बयान पर अज्ञात अपराधियों के खिलाफ शेख अफसार की हत्या का केस हुआ है, लेकिन केस में यह जिक्र नहीं किया गया है कि शेख अफसार हबीबपुर थाने का ड्राइवर था और सरकारी काम के दौरान उसकी हत्या हुई है। यहीं नहीं, अफसार की हत्या कर जिस जब्त बाइक को बदमाश लूट कर ले गए, उसका भी केस में उल्लेख नहीं है।
अब तक हबीबपुर थाने के ड्राइवर के हत्याराें का नहीं चला पता
प्राथमिकी हत्या के एक दिन बाद दर्ज की गई। फिर भी केस में उक्त बातों का उल्लेख नहीं होना, पुलिस की नीयत में खोट को दर्शाता है। थानों में प्राइवेट ड्राइवर से काम लेने पर पुलिस मुख्यालय ने रोक लगाई है। फिर भी कई थानों की गाड़ियां प्राइवेट ड्राइवर चलाते हैं। अगर प्राथमिकी में थाने के प्राइवेट ड्राइवर को उल्लेख होता तो शायद जिम्मेदार पर गाज गिर सकती थी।
अब तक इस मामले में पुलिस हत्यारों का पता नहीं लगा पाई है। तकनीकी अनुसंधान में भी सफलता मिलने की संभावना कम है। केस की जांच में तीन आईपीएस अधिकारियों को लगाया गया है। टीम सारे एंगल पर जांच कर चुकी है, लेकिन किसी में सबूत नहीं मिले। अब तक की जांच में आया है कि ड्राइवर की हत्या अचानक लूट के इरादे से की गई थी और बाइक, मोबाइल, पर्स आदि लूट कर बदमाश फरार हो गए थे। बदमाश लोकल के थे या बाहरी, यह पता नहीं चल पाया है।
इन बिंदुओं पर पुलिस को नहीं मिले सबूत
1. नशे में पकड़े गए मो. सोनू और उसके साथी : पहले पुलिस को शक था कि शराब के नशे में पकड़े जाने के बाद मो. सोनू ने अपने साथी को फोन कर सूचना दी। इसके बाद उसे साथी पुलिस के जाने के बाद मौके पर पहुंचे और ड्राइवर को गोली मारकर बाइक ले लिया। लेकिन सोनू और उसके साथियों को तीन दिन रखने के बाद भी पुलिस को इस दिशा में सफलता नहीं मिली।
2. किसी दूसरे ड्राइवर से अफसार की दुश्मनी : शेख अफसार 20-25 दिनों से हबीबपुर थाने की गाड़ी चला रहा था। चर्चा थी कि किसी दूसरे ड्राइवर से उसकी दुश्मनी है और उसने ही हत्या कराई है। लेकिन पुलिस को इस दिशा में सबूत नहीं मिला।
3. मुखबिरी या वसूली : अक्सर थाने के ड्राइवर पुलिस की मुखबिरी भी करते हैं और अपराधियों के बारे में सूचना देते हैं। लेकिन शेख अफसार नवगछिया का रहने वाला था और मात्र 20-25 दिन काम करने के कारण उसकी जान-पहचान इलाके में ज्यादा नहीं थी। इस कारण मुखबिरी या वसूली के बिंदु पर भी पुलिस को कामयाबी नहीं मिली।
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दैनिक भास्कर,,1733
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