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Saturday, September 5, 2020

सीएम की घोषणा के बाद गरमाई दलित राजनीति, विपक्ष ने पूछा- क्या सवर्ण, अल्पसंख्यक व अन्य समाज के लोगों की जान की कोई कीमत नहीं

एससी-एसटी की हत्या पर उस परिवार के एक सदस्य काे सरकारी नौकरी देने की सीएम की घोषणा के बाद पूरा विपक्ष मुखर हो गया। तेजस्वी से लेकर मायावती तक ने सरकार को घेरा। इसे चुनावी घोषणा कहा। पूछा- 5 साल तक सरकार ने क्यों नहीं कोई कदम उठाया?

हत्या के प्रोमोशन का कानून न बनाए सरकार

तेजस्वी यादव ने कहा- हत्या हो ही नहीं ऐसी व्यवस्था हो, न कि हत्या के प्रोमोशन का कानून बने। फिर सवर्ण, पिछड़ा, अति पिछड़ा और आदिवासियों की हत्या पर सरकारी नौकरी क्यों नहीं मिलनी चाहिए? क्या सवर्णों की जान की कोई कीमत नहीं है? क्या अन्य समाज के लोगों के परिजनों को नौकरी की जरूरत नहीं है?

चुनाव के समय ही क्यों आई इसकी याद

कांग्रेस के शक्ति सिंह गोहिल ने कहा कि अंग्रेजों की तरह जदयू-भाजपा की सरकार भी डिवाइड एंड रूल पॉलिसी पर काम कर रही है। राज्य सरकार की यह बात सत्ता के प्रति उसके खासे अाग्रह काे खुलेअाम करती है। पांच वर्ष पहले ही यह फैसला लेने की जरूरत थी, लेकिन चुनाव के वक्त यह याद आया।

दलितों को प्रलोभन दे रही एनडीए सरकार

बसपा अध्यक्ष मायावती ने ट्वीट किया- चुनाव के पहले एनडीए सरकार फिर एससी-एसटी वर्ग के लोगों को प्रलोभन देकर उनके वोट के जुगाड़ में है, जबकि अपने पूरे शासनकाल इस सरकार ने उक्त वर्ग की घोर अनदेखी की है। अगर बिहार सरकार को इस समुदाय के लोगों के हितों की इतनी ही चिंता थी, तो अबतक क्यों सोई रही।

सरकारी नौकरी की बात चुनावी घोषणा

रालोसपा अध्यक्ष उपेंद्र कुशवाहा ने कहा कि दलित और महादलित की हत्या पर एक आश्रित को सरकारी नौकरी देने की सरकार की घोषणा महज चुनावी बातें हैं। सरकार पहले दलित की हो रही हत्या तो रोके। जिन लोगों की हत्या हुई है, पहले उनके परिजन को सरकारी नौकरी दे। चुनाव के दौरान लोक लुभावनी बातें हो रही हैं।

सामाजिक न्याय के ठगों का असली चेहरा दिखा

प्रदेश जदयू के मुख्य प्रवक्ता संजय सिंह ने कहा कि सामाजिक न्याय के ठगों का असली चेहरा सामने आ गया। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने दलित की हत्या पर उसके घर के एक सदस्य को नौकरी देने की जो बात कही है, वह संविधान में पहले से है। तेजस्वी यादव ने इसका विरोध कर साबित कर दिया कि उनका परिवार आज तक इस बड़ी जमात को बस ठगता रहा है।

विरोध करने वालों को कानून का ज्ञान नहीं

पूर्व सीएम जीतनराम मांझी ने कहा कि एससी-एसटी के किसी व्यक्ति की हत्या होने पर उसके परिवार के एक सदस्य को नौकरी देने के सरकार के फैसले पर अगर कोई सवाल उठाता है तो उसे कानून का ज्ञान नहीं है। एससी-एसटी एट्रोसिटी एक्ट 1989 में बना है। उसका अधिनियम 1995 में बनाया गया और उस समय से लागू है।



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After the announcement of CM, the Dalit politics heated up, the opposition asked - Is there any cost to the lives of the upper castes, minorities and other society

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दैनिक भास्कर,,1733

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