केन्दीय कारा के संसीमन केंद्र में 3 साल से वतन वापसी का इंतजार कर रहे बांग्लादेशी कैदी मो.तौफीक की भागलपुर में इलाज के दौरान मौत हो गई। बांग्लादेश के मल्लिक पुर कंसार के चकीती निवासी मो.तौफीक को 13 जनवरी 2010 में केंद्रीय कारा भेजा गया था।
मामले में 14 जनवरी 2013 को प्रथम अपर जिला एवं सत्र न्यायाधीश ने तीन साल सश्रम कारावास तथा 3000 अर्थ दंड के बदले में 3 महीने की सजा निर्धारित की थी। सजा खत्म होने के बाद तौफीक घर वापसी का इंतजार करने लगा। लेकिन विदेशी नागरिक होने के कारण मंजूरी नहीं मिल सकी। केंद्रीय कारा अधीक्षक ई.जितेंद्र कुमार ने बताया कि स्वदेश वापसी की प्रत्याशा में चार सितंबर 2017 से वह संसीमन केंद्र में रह रहा था। विदेशी नागरिक को हम तब तक उनके देश नही भेज सकते जब तक वहां के एम्बेसी द्वारा यहां के एम्बेसी से वार्ता होकर वहां से उक्त नागरिक की मांग नहीं हो जाए। इस मामले में भारत के एम्बेसी द्वारा बांग्लादेश के एम्बेसी को पत्र भी लिखा गया था। जब काफी दिनों तक कोई जवाब नहीं मिला तो उसे 4 सितंबर को केंद्रीय कारा के ही संसीमन केंद्र में शिफ्ट कर दिया गया था।
पिछले 3 साल तीन महीने से तौफीक केंद्रीय कारा में विदेशी नागरिकों के लिए बनाए गए संसीमन केंद्र में ही रह रहा था। तौफीक को घर भेजने के लिए 8-9 बार गृह विभाग के माध्यम से पत्र भी भेजा गया लेकिन तौफीक के घर वापसी को लेकर कोई जवाब नहीं मिला। 24 नवंबर को कारा चिकित्सक की अनुशंसा पर सदर अस्पताल भेजा गया। सदर अस्पताल में सिविल सर्जन द्वारा गठित मेडिकल टीम की सलाह पर उसे 5 दिसंबर को भागलपुर मेडिकल कॉलेज भेजा गया था, जहां उसकी इलाज के दौरान मौत हो गई।
उन्होंने बताया कि मामले की जानकारी जिलाधिकारी और एसपी को देने के साथ-साथ कारा आईजी को घटना की जानकारी देते हुए गृह विशेष विभाग को देने का आग्रह किया गया है। उन्होंने बताया कि किसी भी विदेशी नागरिक को रिहा करने से पहले उस देश के दूतावास को जानकारी दी जाती है। दूतावास से नागरिक की पहचान होने और स्वीकृति के बाद ही विदेशी कैदी को रिहा किया जाता है।
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दैनिक भास्कर,,1733
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