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Sunday, May 17, 2020

दूध की जगह पानी के सहारे डेढ़ साल की बच्ची ने पूरा किया 47 घंटे का सफर; कामगार बोले- कभी नहीं जाएंगे परदेस

ट्रेन की खिड़की से बच्चे झांक रहे थे। मांगर्मी और भुख से बिलबिला रहे बच्चों को ट्रेन से उतरने के बाद खाना मिलने का दिलासा देकर शांत दिला रही थी। मुजफ्फरपुर के रहने वाले मदन कुमार ने भास्कर टीम को बताया कि परिवार के साथ चेन्नई तकदीर बदलने गये थे लेकिन दो महीने में हालात ही बिगड़ गये। सोचा था बाहर जाकर दो पैसे कमाएंगे और घर में पैसा मां-बाप को भेजेंगे। हालत ऐसी बनी कि घर से ही पैसा मंगाने पर मजबूर हो गये। महसूस हुआ कि परदेस से अच्छा अपना घर है। विकट परिस्थिति में वहां कोई साथ देने वाला नहीं है।
पैदल और मालवाहक वाहनों से चोरी छिपे आने वाले प्रवासी कामगारों को रेलवे और बिहार-यूपी सरकार ने बड़ी राहत दी है। यूपी के बार्डर से प्रतिदिन ट्रेन खुलेगी। कर्मनाशा से रोज 2 बजे कर्मनाशा-बिहारशरीफ श्रमिक स्पेशल ट्रेन खुलेगी जो 331 किलोमीटर का सफर तय कर बिहारशरीफ स्टेशन पर 9 बजे पहुंचेगी। इस ट्रेन का बिहारशरीफ के अलावा दो ही स्टेशन औरंगाबाद और गया में स्टॉपेज होगा। जबकि पटना में ऑपरेशनल स्टॉपेज है। श्रमिकों के लिए यह बड़ी राहत वाली खबर है।
चेन्नई से बिहारशरीफ पहुंचे 1470 प्रवासी, बोले परदेस में नहीं कोई अपना
रविवार को चेन्नई सेन्ट्रल से प्रवासी कामगारों को लेकर चली स्पेशल ट्रेन बिहारशरीफ स्टेशन पहुंची। ट्रेन करीब 8 घंटे लेट पहुंची थी। नालंदा के अलावा और जिलों के 1470 प्रवासी आये थे। जैसे ही स्पेशल ट्रेन 4 बजकर 20 मिनट पर आउटर सिग्नल पार कर स्टेशन पहुंची प्रवासी खिड़की से हाथ बाहर निकालकर खुशी का इजहार करने लगे। ट्रेन में स्टूडेंट भी थे। हालांकि नन एसी ट्रेन रहने के कारण प्रवासी गर्मी से बदहाल दिखे। बिहारशरीफ में उतरते ही यात्रियों की स्क्रीनिंग कर पानी और खाना दिया गया। चेन्नई से कामगारों को लेकर यह दूसरी श्रमिक स्पेशल ट्रेन बिहारशरीफ पहुंची थी।

डीएम योगेन्द्र सिंह और एसपी निलेश कुमार सहित तमाम वरीय पदाधिकारी स्टेशन पर तैनात थे। यात्रियों ने बताया कि शुक्रवार को करीब 5 बजे शाम चेन्नई सेन्ट्रल से ट्रेन खुली थी। जहानाबाद के यात्री अजय कुमार ने बताया कि चेन्नई सेन्ट्रल में खाना और पानी दिया गया था। रास्ते में कहीं-कहीं सिर्फ बिस्कुट और पानी दिया गया। बिहारशरीफ स्टेशन पर खाना-पानी की सुविधा देखकर जिला प्रशासन की सभी ने सराहना की। बता दें कि यहां सोशल डिस्टेंसिंग के साथ स्क्रीनिंग काउंटर पर ही खाने के पैकेट और पानी का बोतल देने की व्यवस्था थी।
अपने घर पहुंचने की खुशी
प्रवासियों के चेहरे पर सुकून दिख रहा था। यात्री नवल पाल ने बताया कि लॉकडाउन के कारण चेन्नई में काम छूट गया था। खाने की समस्या हो रही थी। घर लौट गये हैं यह बड़ी खुशी है।
बस से ले जाया गया
नालंदा के विभिन्न प्रखंडों के अलावा अन्य जिलों के लिए बिहारशरीफ स्टेशन के बाहर बसें खड़ी थी। नगर निगम कर्मियों ने बस को सैनिटाइज कर दिया था। कामगारों को पहले स्टेशन परिसर से गोलापर हवाई अड्‌डा मैदान ले जाया गया। वहां से उन्हें उनके जिलों में भेजा गया।
नहीं चल पा रहा था परिवार
औरंगाबाद के राजेश मेहता ने बताया कि वह अपने पिता, पत्नी और दो बच्चों के साथ रह रहे थे। डाटा इंट्री का काम करते थे। जिसके लिए 18 हजार रुपये वेतन मिलता था। लॉक डाउन के कारण काम बंद हो गया। कंपनी से वेतन के नाम पर सिर्फ 8 हजार रुपये मिलने लगे। छह हजार रूम रेंट लिया जाता था। बाकी दो हजार में गुजर बसर करना मुश्किल था।
सबसे पहले बच्चों को खिलाया खाना
सफर के दौरान कहीं कुछ नहीं मिला। डेढ़ साल की मासूम आकृति सिंह रो-बिलख रही थी। उसकी मां ने बताया कि जब रास्ते में उन्हें कहीं कहीं बिस्कुट मिलता था तो बच्ची दूध के लिए रोती थी। पानी पिलाकर और बिस्कुट खिलाकर चुप कराना पड़ता था। सभी अभिभावकों ने भोजन का पैकेट मिलते ही सबसे पहले अपने बच्चों को खाना खिलाया।
प्लेटफार्म नम्बर 2 पर उतारा गया: सभी कामगारों को प्लेटफार्म नम्बर 2 पर उतारा गया। जहां मेडिकल टीम और शिक्षा विभाग के कर्मी काउंटर पर स्क्रीनिंग व रजिस्ट्रेशन कर रहे थे। सभी कामगारों को 14 दिन प्रखंड और सात दिन होम क्वारेंटाइन पर रहने की सलाह दी गयी। माइक से सोशल डिस्टेंसिंग सहित जरूरी सावधानियों के बारे में घोषणा की जा रही थी।
चार घंटे बाद मिला भोजन
स्टेशन पर 11 बजे से तैनात शिक्षक भी भूख से परेशान थे। बताया कि सुबह 8 बजे आना था लेकिन ट्रेन लेट रहने के कारण 11 बजे आने की सूचना दी गयी। समय पर तो आ गये लेकिन दिन भर भूखा रहना पड़ा। करीब 3.30 बजे खाना दिया गया।



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ट्रेन की खिड़की से बाहर झांक रही बच्ची दूध के लिए टकटकी लगाए है, लेकिन पूरे सफर में उसे पानी ही नसीब हुआ।

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दैनिक भास्कर,,1733

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