(रमा रमण आचार्य) यह साहसिक कहानी है दरभंगा की बेटी 15 साल की ज्योति कुमारी की, जिसने अपने बीमार पिता की जिंदगी बचाने के लिए अपनी जिंदगी दांव पर लगा दी। इस बेटी ने महज 1000 रुपए में खरीदी गई पुरानी साइकिल से गुरुग्राम से दरभंगा के सिरहुल्ली की 1200 किलोमीटर की यात्रा कर अपने बीमार पिता को घर ले आई। तभी उसके पिता अपनी बेटी को श्रवण कुमार कहते हैं।
दैनिक भास्कर टीम जब उसके घर पहुंची तो जाना-परिवार में मम्मी-पापा के अलावा 5 भाई-बहनें हैं। पांच भाई-बहनों में ज्योति से बड़ी एक बहन पिंकी (20 वर्ष) है। उसकी शादी हो चुकी है। उससे छोटी बहन मानसी कुमारी (10 वर्ष) और दो भाई दीपक कुमार (7 वर्ष) व प्रियांशु कुमार पिंकी (5 वर्ष) इंदिरा आवास के एक कमरे में रहते हैं।
यहीं पूरी जिंदगी सिमटी रही। अब अमरीकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की बेटी इवांका ट्रंप ज्याेति की तारीफ कर रही हैं, तो वहीं केंद्रीय स्वास्थ्य राज्य मंत्री अश्वनी चौबे उसे स्वास्थ्य मंत्रालय का ब्रांड अंबेस्डर बनाने पर विचार करने की बात कर रहे हैं। दैनिक भास्कर ने ज्योति से बात कर जाना कि अब तक उसके संघर्ष का रास्ता क्या रहा? और अब आगे उसका क्या प्लान है?
अभी तो खूब तारीफें मिल रही हैं, पर इससे पेट नहीं भरता...
प्र- आप साइकिल से गुरुग्राम सेक्यों चलीं?
ज्योति-करीब 3 साल पहले पापा गुरुग्राम गए। वहां ई-रिक्शा चलाने लगे। लॉकडाउन बढ़ता गया तो 8 मई, 2020 की रात पापा को समझाया कि यहां रहेंगे भी तो मौत तय है। न खाना मिल रहा है और न ही दवा। मकान मालिक की मकान खाली करने की धमकी अलग। लोग पैदल जा रहे हैं। हमारे पास तो साइकिल है। दरभंगा व मधुबनी के करीब 20 से 25 लोगों के साथ 8 मई की रात साइकिल से बीमार पापा को लेकर मैं भी गुरुग्राम से निकल पड़ी।
प्र- क्या अंधेरे, सुनसान रास्ते का डर नहीं लगा?
ज्योति-डर तो खूब लग रहा था, लेकिन दूसरा चारा भी नहीं था। गुरुग्राम से निकलने के बाद हमने ठान लिया कि अब घर पहुंच कर ही दम लेंगे। 9 मई की रात रास्ते में एक पेट्रोल पंप पर बिताई। पेट्रोल पंप वाले ने खाना दिया। 10 मई की अहले सुबह वहां से निकले। डर लगता था, पर रात में चलने में ज्यादा सुविधा होती थी, क्योंकि सड़क पर कम भीड़ रहती थी।
प्र- क्या सरकारों या लोगों ने मददनहीं की?
ज्योति-26 जनवरी 2020 को पापा हादसे में जख्मी हो गए। इलाज के लिए पैसा नहीं था। मम्मी ने शुभ लक्ष्मी बैंक ग्रुप से 38000 लोन लिए। गहने गिरवी रखा। 30 जनवरी को मैं मम्मी, जीजा के साथ गुरुग्राम पापा के पास पहुंची। इलाज शुरू हुआ। मम्मी-जीजा लौट आए, मैं वहीं रुक गई। लॉकडाउन के बाद बिलकुल भी पैसे नहीं थे। रास्ते में लोगों ने काफी मदद की। एक दिन कड़ी धूप थी। मेरी व पापा की स्थिति देख एक ट्रक वाले ने थोड़ी दूर लिफ्ट दिया। 15 मई की रात नौ बजे घर पहुंची। अभी होम क्वारेंटाइन में ही हूं।
प्र- अब तो कई लोग मदद कर रहे हैं?
ज्योति-तारीफें भी खूब हो रही, पर इससे पेट नहीं भरता। हमें तो चिंता इस बात की है कि लॉकडाउन के बाद दो जून की रोटी मिलेगी या नहीं। हम चाहते हैं कि सरकार मेरे पापा के लिए रोजगार की स्थायी व्यवस्था करे।
प्र- साइकिल कैसे-कहां सीखी?
ज्योति-गांव स्थित स्कूल से आठवीं तक की पढ़ाई की। आगे की पढ़ाई के लिए गांव से 3 से 4 किलोमीटर दूर पिंडारूच जाना पड़ता। इसलिए पढ़ाई छोड़ दी। बड़ी बहन पिंकी कुमारी को मुख्यमंत्री साइकिल योजना के तहत साइकिल मिली थी। उसी साइकिल से मैंने साइकिल चलाना सीख लिया था।
प्र- भविष्य में क्या सोचा, पढ़ाई या साइकिलिंग?
ज्योति-सबसे पहली चुनौती दिल्ली स्थित नेशनल साइक्लिंग एकेडमी की ओर से दिए गए ऑफर को पूरा करना है। मैंने इसके लिए उनसे एक माह का समय लिया है। एकेडमी के अध्यक्ष ने इस पर अपनी सहमति दे दी है। अब पहले सिर्फ साइक्लिंग शुरू करेगी। बाद में बीए करके अफसर बनना चाहती हूं। फिलहाल उच्च विद्यालय, पिंडारूच, सिंहवाड़ा में नौवीं कक्षा में नामांकन हो गया है। शिक्षा विभाग के निर्देश पर 23 मई को सर्व शिक्षा अभियान के तहत जिला शिक्षा पदाधिकारी महेश प्रसाद सिंह ने मध्य विद्यालय, सिरहुली में नई साइकिल, नौवीं कक्षा की एक सेट किताब/ कॉपी, 2 जोड़ी स्कूल ड्रेस, जूता/मौजा दिया।
स्वास्थ्य मंत्रालय की ब्रांड एंबेसडर!
केंद्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण राज्य मंत्री अश्विनी कुमार चौबे ने कहा कि मंत्रालय बिहार (दरभंगा) की बेटी ज्योति को अपना ब्रांड एंबेसडर बनाने पर विचार करेगा। उन्होंने ज्योति की हौसला आफजाई की और कहा कि विपरीत परिस्थिति में उसने साहस का परिचय दिया।
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दैनिक भास्कर,,1733
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