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Thursday, August 27, 2020

पिता के पास स्कूल में दाखिले तक के पैसे नहीं थे, बेटा इसरो में बना वैज्ञानिक

सपने एक दिन जरूर सच होते हैं। हां, कभी-कभी थोड़ा ज्यादा वक्त लग सकता है। जरूरत तो सिर्फ इस बात है कि आप पूरे यकीन के साथ अपने मिशन पर डटे रहें। प्रभात पाण्डेय ने भी बहुत ही छोटी उम्र में सपना देखा था। वैज्ञानिक बनने का। अपने देश के लिए कुछ नया करने का लेकिन, निर्धनता की वजह से उसके पिता मिथिलेश पाण्डेय को कभी-कभी अपने बेटे का सपना टूट जाने का डर लगता था।

उन्होंने भी कभी एक बड़ा अधिकारी बनने का सपना देखा था। उत्तर-प्रदेश के अंबेडकर नगर जिले के एक बहुत ही छोटे से गांव में रहता था उनका परिवार। उनके पिता पूजा-पाठ करवाते थे। कोई ठोस आमदनी का जरिया नहीं था। अपने दम पर ही पढ़ाई की। मिथिलेश पाण्डेय अफसर तो नहीं बन सके, लेकिन संस्कृत के अच्छे ज्ञाता जरूर हो गए।

गांव में ही कुछ बच्चों को पढ़ाने का काम शुरू कर दिया। कुछ दिनों बाद शादी हुई और फिर चार बच्चे भी हो गए। बच्चों को खुद पढ़ाने लगे। बेटा प्रभात पढ़ने में बड़ा होशियार था। बहुत मेहनती भी था। कुछ न कुछ विज्ञान सम्बंधित मॉडल बनाता रहता था। गांव के बगल में एक छोटा सा प्राइवेट स्कूल था। प्रभात वहां पढ़ना चाहता था लेकिन, फीस के लिए पैसे नहीं थे। इसलिए प्रभात की पूरी पढ़ाई सरकारी स्कूल से ही हुई।
अब प्रभात हाई-स्कूल में पहुंच गया था। पिता के पास इतने पैसे नहीं थे कि उसे विज्ञान विषय पढ़ा सकें। उसकी इच्छा गणित और विज्ञान के बारे में खूब जानकारी रखने की थी। कहीं से कोई सहायता नहीं मिल रही थी लेकिन, प्रभात में गजब का हौसला था। सेल्फ-स्टडी के दम पर ही उसने बोर्ड परीक्षा इतने अच्छे अंकों से पास की कि वह अपने आस-पास के गांव में मशहूर हो गया।

पिता को पता था कि प्रभात वैज्ञानिक बनना चाहता है इसलिए वह चाहते थे कि बेटा आईआईटी से पढ़ाई करे। उन्होंने अपने कई रिश्तेदारों से बातचीत भी की। सभी ने प्रभात को कोटा भेजने की सलाह दी। मिथिलेश पाण्डेय निर्धन जरूर थे लेकिन, बहुत ही स्वाभिमानी भी थे। उन्होंने किसी के सामने कभी हाथ नहीं फैलाया।

इस दौरान वे पैसों के जुगाड़ के बारे में सोच ही रहे थे कि किसी ने उन्हें सुपर 30 के बारे में बताया। वे प्रभात को लेकर मेरे पास पटना आ गए। उनके हाथ में एक मिठाई का िडब्बा भी था। मैंने एक टेस्ट लिया और पाया की प्रभात सच में पढ़ने में अच्छा है और बहुत जुझारू भी है।
व्यवहार से सौम्य प्रभात सुपर 30 के बच्चाें के साथ-साथ मेरे परिवार के सदस्यों से भी काफी घुलमिल गया था। रिजल्ट के दिन वह बहुत खुश था। आईआईटी के रिजल्ट में उसका नाम था लेकिन, वह जो ब्रांच लेना चाहता था उसे नहीं मिल रही थी। इसलिए वैज्ञानिक बनने के ख्याल से वह एनआईटी चला गया।

वहां खूब मेहनत की और जब नौकरी लगी तब फिर से मिठाई लेकर अपने पिता के साथ मुझसे मिलाने पटना आया लेकिन, वह तो वैज्ञानिक बनाना चाहता था। इसलिए जहां था वहीं मेहनत करता रहा। इसी बीच उसका सलेक्शन इसरो में हो गया। आखिरकार प्रभात को उसके सपनों की जगह मिल गई।



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Father did not have money even to enroll in school, son became scientist in ISRO

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दैनिक भास्कर,,1733

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