क्षेत्र में भक्त श्रद्धालुओं ने भाद्र मास के शुक्ल चतुर्थ तिथि में अनंत चतुर्दशी का व्रत उपवास श्रद्वा और भक्ति भाव के साथ किया। इस दिन भक्तों ने भगवान श्रीहरि विष्णु की पुरोहितों से कथा श्रवण के बाद अनंत डोरे को धारण किया। तत्पश्चात दोपहर में व्रत का उद्यापन प्रसाद ग्रहण के बाद किया।
इस व्रत को धारण करने वाले भक्तों को कथा श्रवण में पुरोहित ने बताया कि भगवान श्रीकृष्ण ने पांडवों को जुए में अपनी राज्य हार जाने के पश्चात बारह वर्ष को मिले बनवास के कष्ट से छुटकारा पाने के लिए अनंत व्रत करने को कहा तथा इस व्रत की महत्ता बताते हुए कहा कि प्राचीन काल में सुमंत नामक ऋषि की पुत्री सुशीला ने किया।
जिसका कौडिंय ऋषि के साथ विवाह हुआ था। वहीं सर्वप्रथम नदी किनारे अनंत चतुर्दशी को अनंत भगवान की पूजा आराधना विधिवत किया। जिसके उपरांत उसे सभी के धन्य धान्य सुख प्राप्त हुई। वैसे तो यह व्रत पूर्ण निष्ठा के साथ चौदह वर्ष धारण करने चाहिए। अनंत डोरे में इसी कारण चौदह गांठ होता है जिसे व्रती पुरुष दाहिने और महिला बाएं हाथ धारण करती है।कथा में कृष्ण पांडवों को कहते है कि युधिष्ठिर यदि अनंत व्रत को एक वर्ष भी कर ली तो निश्चित ही सारे कष्टों से मुक्ति मिल जाएगी।कथा श्रवण के अंत में भक्तों ने क्षीर समंदर का मंथ की।
पकड़ी गांव में श्रद्धालुओं को कथावाचक पंडित ब्रज किशोर दूबे ने बताया कि शास्त्र विधि के अनुसार जो भी भक्त अनंत व्रत का उपवास करता है, निश्चित ही उस पर श्रीहरि भगवान विष्णु की कृपा बनी रहती है।
हालांकि तिथियों के धट बढ़ के कारण कहीं कहीं मंगलवार को भी अनंत व्रत का उपवास करने की बात कही और सुनी जा रही हैं।
प्रखंड क्षेत्र में अनंत चतुर्दशी का पर्व धूमधाम से भक्ति वातावरण में मनाया गया। अनंतचतुर्दशी में अनंत सूत्र बांधने की परंपरा है। इसके पीछे मान्यता है कि,अनंत सूत्र बांधने से प्राणी की अनंत काल तक भगवान नारायण रक्षा करते हैं। इस दिन गावों में दुःख दरिद्र हरनेवाले व अन्न धन देने वाले भगवान अनंत की पूजा की गयी।
अन्य व्रतों से अलग इस व्रत की कथा गांवो में एक ही जगह होने की परंपरा आज भी चलती आ रही है। जहां सभी लोग पूजा का सामान व अनंत व्रत लेकर पहुंचते हैं और कथा का श्रवण करते हैं।
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दैनिक भास्कर,,1733
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