अखिलेश कुमार/धर्मेंद्र डागर | नई दिल्ली
जिन मजदूरों ने शहरों के विकास के लिए अपना पसीना बहाया, कोराना के इस दौर में वही शहर न उन्हें आशियाना दे पा रहा है और न दो वक्त की रोटी। उन्हें मिल रही है तो हिकारत और जलालत। जो कुछ कमाया वह लॉकडाउन के लंबी अवधि में खर्च हो चुका। गांव की ओर पलायन करने के अलावा उनके पास कोई रास्ता नहीं। काम छिन चुका है और मकान मालिक किराया मांग रहे हैं। समाज, सिस्टम और सरकार जो कुछ कर रही है, वह ऊंट के मुंह मे जीरा तो है ही, स्थायी इलाज भी नहीं है। दुकान पर काम करने वाले, निर्माण मजदूर, बड़ी सब्जी मंडी, साप्ताहिक बाजार और फैक्ट्री में काम करने वालों को जोड़ लें तो दिल्ली में 30 लाख से अधिक मजदूर हैं। भारतीय मजदूर संघ, दिल्ली प्रदेश के महासचिव अनीश मिश्रा कहते हैं कि फंसे हुए मजदूर जो लॉकडाउन में अपने गांव लौटना चाहते हैं उनकी संख्या करीब 10 लाख होगी। इसमें 3 लाख से अधिक मजदूर किसी ना किसी तरीके से दिल्ली से इस 50 दिन के लॉकडाउन में पैदल, साइकिल, ठेला या ट्रक में सवार होकर निकल गए। बिहार सरकार के आंकड़ाें के अनुसार वहां के दिल्ली में 1.99 लाख मजदूर हंै। दिल्ली सरकार के निर्माण मजदूर बोर्ड में 43 हजार रजिस्टर हैं और नए रजिस्ट्रेशन अभी चल रहे हैं। 8.5 हजार नाइट शेल्टर में रुके हैं। दिल्ली से बिहार, यूपी, मध्य प्रदेश, पंजाब, राजस्थान जाने के लिए मंगलवार 12 मई शाम तक 59 हजार मजदूरों ने रजिस्ट्रेशन कराया है, जिसमें करीब 75% बिहार के हैं। अगर ई-रिक्शा चालक, ऑटो-टैक्सी चालकों को भी मजदूर की श्रेणी में जोड़ लें तो इनकी संख्या करीब दो लाख और बढ़ जाएगी। बंगाल, यूपी, हरियाणा, मध्य प्रदेश के कितने-कितने मजदूर हैं, इनकी संख्या अलग से नहीं है।
हरियाणा से यूपी के लिए पैदल निकला परिवार:बच्चों के साथ रातभर किया सफर, ऑटो वाले ने पुल पार कराने के मांगे 250 रुपए
दादी की गोदी में एक साल का कार्तिक और पांच साल का मोहित पैदल ही हाथ में बिस्किट का पैकेट लिए जीटी रोड से यूपी बॉर्डर की ओर जा रहा था। परिवार के मुखिया महिपाल ने बताया कि बहादुरगढ़ से बुधवार शाम 5 बजे चले थे। हरदोई जाना है। शाहदरा फ्लाईओवर पर पहुंचे हैं। परिवार की तीन महिलाएं, दो बच्चे और दो युवक बिना सोए रातभर चले। बॉर्डर पर पुलिस वालों ने रोका और सबका नाम लिखा। पुलिस वालों ने बिस्किट और पानी दिया फिर बस से आगे भेजा। यमुना पुल पार कराने को ऑटो रिक्शा वाला 250 रुपए मांग रहा था। महिपाल के बेटे विशाल ने वापस लौटने के सवाल पर कहा कि ये तो लॉकडाउन पर निर्भर करेगा।
ड्राइवरों का नया धंधा:मंजिल तक पहुंचाने का प्रति व्यक्ति 1800 रुपए तय किया, रिंग रोड पर ट्रक में 33 प्रवासी मजदूर पकड़े
साउथ एक्सटेंशन पार्ट वन में रिंग रोड पर पीकेट चैकिंग के दौरान पुलिस ने एक ट्रक पकड़ लिया। ट्रक के शीशे पर आवश्यक सेवा वाहक औषधि लिखा था और उसे चारों ओर से रस्सी से बांधकर कवर किया था। पुलिस ने कवर हटाया तो उसके अंदर 33 प्रवासी मजदूर मिले, जो अपने गांव जाने के लिए बैठे थे। उन्हें मंजिल तक पहुंचाने के एवज में ड्राइवर ने 18 सौ रुपए भाड़ा तय किया था। 20 हजार एडवांस भी ड्राइवर लिए। पुलिस ने कोटला मुबारकपुर थाने में मुकदमा दर्ज कर ड्राइवर को गिरफ्तार कर लिया। ट्रक भी जब्त है। इनमें 29 मजदूर को रणहौला और चार मजदूर को मायापुरी थाना स्टाफ के हवाले कर दिया, जिन्हें बाद में दिल्ली में रहने वाले पते तक पहुंचाया गया। डीसीपी साउथ डिस्ट्रिक अतुल ठाकुर ने बताया कि ड्राइवर ने कहा कि वह दवाइयां सप्लाई करने के लिए जा रहा है। उससे इस सम्बंध में कागजात मांगे गए जिन्हें वह दिखा नहीं सका।
बिहार जाने को निकले एक परिवार के लोग बोले- दिल्ली में मरने के सिवाय कुछ नहीं बचा
संगम विहार से एक परिवार साथियों के साथ बिहार जा रहा था। परिवार के मुखिया सूरज रजक ने बताया कि करीब दो महीने से काम बंद है। राशनकार्ड नहीं है। खाने के लिए अब रुपए खत्म हो गए हैं। ठेकेदार भी पैसे नहीं दे रहा है। मकान मालिक कमरे का किराया मांग रहा है। अब यहां रहकर मरने के सिवाय कुछ नहीं बचा है। सबसे पहले उन्हें 17 किलोमीटर दूर बदरपुर बार्डर पहुंचना था। इसी तरह प्रदीप ने बताया कि उसके तीनों बच्चे गांव में ही हैं। एक बार जैसे-तैसे गांव पहुंच जाए, फिर वापस नहीं आएंगे। काम कुछ है नहीं, ऐसे में यहां रहकर भूखे थोड़े ना मरना है।
विपक्ष ने की सर्वदलीय बैठक बुलाने की मांग
प्रवासी श्रमिकों का मामला तूल पकड़ गया है। भाजपा विधायकों के साथ विधानसभा में नेता विपक्ष रामवीर सिंह विधूड़ी ने सर्वदलीय बैठक बुलाने की मांग की है जिस बैठक में दिल्ली में फंसे प्रवासी श्रमिकों को लेकर बातचीत किया जा सके।
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दैनिक भास्कर,,1733
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