राजधानी में कोरोना मरीजों की तेजी से बढ़ रही संख्या के बीच नॉन कोविड मरीजों को इलाज में परेशानी का समाना करना पड़ रहा है। मरीज इलाज के लिए इधर-उधर भटक रहे हैं। ईस्ट दिल्ली के इंद्रापुरी निवासी एक महिला अपने 6 माह के बच्चे को लेकर लंबे समय से राम मनोहर लोहिया अस्पताल के चक्कर काट रही है, लेकिन उसके बच्चे को इलाज नहीं मिल पा रहा। इसी तरह मंगोलपुरी इलाके में रहने वाली बुजुर्ग महिला भी इलाज न मिलने के कारण परेशान है। हालांकि सरकार ने सरकारी और प्राइवेट अस्पतालों को आदेश जारी कर कह रखा है कि वह इलाज के लिए मना नहीं करेंगे।
इंद्रापुरी में रहने वाली नाजिमा के 6 महीने के बच्चे की कमर पर फोड़ा है। बच्चा दिनभर रोता रहता है। रात में नींद भी नहीं आती।आरएमएल लेकर गए। वहां बताया गया कि बच्चे का ऑपरेशन होना है। 1 मई को हम बच्चे को लेकर अस्पताल गए तो डॉक्टर ने 6 मई को आने के लिए कहा। बुधवार को गए तो कहा पहले कोरोना टेस्ट कराओ उसके बाद एमआरआई और अन्य जांचे होंगी। दूसरे अस्पताल जाने के लिए भी कह दिया। इस संबंध में आरएमएल की प्रवक्ता स्मृति तिवारी ने कहा कि हमारे यहां ओपीडी कभी बंद नहीं हुई।
लापरवाही: ऑपरेशन जरूरी बताया मगर इलाज नहीं किया
प्रेम नगर इलाके का रहने वाले मनोज कुमार की मां केबला देवी को लॉकडाउन से पहले हाथ में चोट लगी थी। उस वक्त वह संजय गांधी अस्पताल की इमरजेंसी में लेकर गए थे। अस्पताल ने उस वक्त तो प्लास्टर कर दिया। मगर अब इलाज नहीं कर रहे। संजय गांधी अस्पताल के मेडिकल सुप्रिंटेंडेंट डॉ. पीएस नैयर ने कहा कि अस्पताल में ओपीडी चालू हैं। इसकी जानकारी मुझे नहीं है।
समस्या: दो सरकारी अस्पतालों में गए मगर नहीं मिला इलाज
मौजपुर में रहने वाले 65 साल के अकबर अली को 4 मई की सुबह हार्ट अटैक हुआ था। उन्हें जीबी पंत अस्पताल ले गए। अली की बेटी समरीन ने कहा कि जीबी पंत अस्पताल में बेड नहीं कहकर लौटा दिया। इसके बाद वह राम मनोहर लोहिया अस्पताल गए। वहां कोरोना संदिग्ध मरीजों के वार्ड में भर्ती कर लिया, लेकिन कोई इलाज नहीं किया। अब समाजसेवी की सहायता से निजी अस्पताल में इलाज कराने को मजबूर हैं।
कैंसर का इलाज न होने से परिजन परेशान
शाहदरा के कबीर नगर निवासी इरफान अली को कैंसर है और उनका इलाज दिल्ली स्टेट कैंसर अस्पताल से चल रहा था। इरफान के भाई अकील ने कहा कि अस्पताल में फरवरी में आखिरी बार उनकी कीमो थेरेपी हुई थी। इसके बाद उनकी थेरेपी नहीं हो पाई है। अस्पताल में इलाज के लिए मना कर दिया जाता है। अभी 4 मई को गए थे तो बाद में आने को बोला। उन्हें इलाज नहीं मिलेगा तो हालत खराब होगी। एक महीने में तीन बार कीमो थेरेपी होती है और थेरेपी न हुए तीन महीने बीत गए हैं। कीमो थैरेपी से थोड़ा आराम मिलता है। इलाज के लिए प्रॉपर्टी और वाहन तक बेचना पड़ा है। प्राइवेट अस्पताल गए तो वहां पैसे बहुत ज्यादा मांगे। इतने पैसे अब हमारे पास बचे नहीं हैं। एक टेस्ट के 25-30 हजार तक मांगते हैं।
Download Dainik Bhaskar App to read Latest Hindi News Today
https://ift.tt/3btd35O
दैनिक भास्कर,,1733
No comments:
Post a Comment